रुला के गया सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया सपना…
वही है ग़म-ए-दिल, वही है चंदा-तारे
वही हम बेसहारे
आधी रात वही है, और हर बात वही है
फिर भी न आया लुटेरा
रुला के गया सपना…
कैसी ये ज़िंदगी, कि साँसों से हम ऊबे
कि दिल डूबा, हम डूबे
इक दुखिया बेचारी, इस जीवन से हारी
उस पर ये ग़म का अन्धेरा
रुला के गया सपना…